Ajmer Sharif Dargah News : अजमेर शरीफ दरगाह विवाद गरमाया, मंदिर के दावे के बाद असदुद्दीन ओवैसी तक भड़के, जानें अब तक क्या क्या हुआ
Ajmer Dargah Controversy अजमेर दरगाह को महादेव मंदिर घोषित करने की याचिका ने भारी विवाद खड़ा कर दिया है। हिन्दू सेना के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता की ओर से दायर याचिका को कोर्ट ने मंजूर किया है। इसके बाद विभिन्न राजनीतिक और धार्मिक संगठनों ने विस्तृत प्रतिक्रिया दी है, अगली सुनवाई 20 दिसंबर को निर्धारित की गई है।
अजमेर : विश्व प्रसिद्ध ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की अजमेर दरगाह को महादेव मंदिर घोषित करने को लेकर जमकर बवाल छिड़ा हुआ है। न केवल राजस्थान, बल्कि पूरे देश में भी इस विवाद से पारा उबाल पर है। इस विवाद की शुरुआत हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता की एक याचिका से हुई, जहां उन्होंने अजमेर दरगाह को संकट मोचन महादेव मंदिर घोषित करने की मांग की। इसको लेकर अजमेर की अदालत ने 27 नवंबर को इस याचिका के आधार पर दरगाह के सर्वेक्षण को मंजूरी दी। इसके बाद से इस मुद्दे को लेकर जमकर सियासत जारी है। जानिए आखिर अजमेर दरगाह को लेकर क्या है पूरा विवाद ? दोनों पक्ष क्या तर्क दे रहे हैं और अब आगे क्या हो सकता है।
अजमेर दरगाह बनाम शिव मंदिर! आखिर क्या है पूरा विवाद?
अजमेर की विश्व प्रसिद्ध ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह को लेकर बीते दिनों से पूरी देश की सियासत में बवाल मचा हुआ है। इस विवाद की शुरुआत अजमेर के एक सिविल कोर्ट में दायर याचिका से हुई। इसमें हिंदू सेना के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने बीते 25 सितंबर 2024 को दरगाह के अंदर एक शिव मंदिर होने का दावा किया। इसको लेकर उन्होंने 'अजमेर हिस्टॉरिकल एंड डिस्क्रिप्टिव किताब के तर्कों का भी हवाला दिया गया है। इसमें अजमेर दरगाह के नीचे हिंदू मंदिर का जिक्र किया गया है। इसको लेकर 27 नवंबर को कोर्ट ने याचिका मंजूर कर दी। इधर, सिविल जज मनमोहन चंदेल ने अजमेर दरगाह समिति, अल्पसंख्यक मंत्रालय और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को नोटिस जारी कर 20 दिसंबर तक जवाब मांगा है।
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Ajmer Dargah Controversy अजमेर दरगाह को महादेव मंदिर घोषित करने की याचिका ने भारी विवाद खड़ा कर दिया है। हिन्दू सेना के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता की ओर से दायर याचिका को कोर्ट ने मंजूर किया है। इसके बाद विभिन्न राजनीतिक और धार्मिक संगठनों ने विस्तृत प्रतिक्रिया दी है, अगली सुनवाई 20 दिसंबर को निर्धारित की गई है।
अजमेर : विश्व प्रसिद्ध ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की अजमेर दरगाह को महादेव मंदिर घोषित करने को लेकर जमकर बवाल छिड़ा हुआ है। न केवल राजस्थान, बल्कि पूरे देश में भी इस विवाद से पारा उबाल पर है। इस विवाद की शुरुआत हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता की एक याचिका से हुई, जहां उन्होंने अजमेर दरगाह को संकट मोचन महादेव मंदिर घोषित करने की मांग की। इसको लेकर अजमेर की अदालत ने 27 नवंबर को इस याचिका के आधार पर दरगाह के सर्वेक्षण को मंजूरी दी। इसके बाद से इस मुद्दे को लेकर जमकर सियासत जारी है। जानिए आखिर अजमेर दरगाह को लेकर क्या है पूरा विवाद ? दोनों पक्ष क्या तर्क दे रहे हैं और अब आगे क्या हो सकता है।
अजमेर दरगाह बनाम शिव मंदिर! आखिर क्या है पूरा विवाद?
अजमेर की विश्व प्रसिद्ध ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह को लेकर बीते दिनों से पूरी देश की सियासत में बवाल मचा हुआ है। इस विवाद की शुरुआत अजमेर के एक सिविल कोर्ट में दायर याचिका से हुई। इसमें हिंदू सेना के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने बीते 25 सितंबर 2024 को दरगाह के अंदर एक शिव मंदिर होने का दावा किया। इसको लेकर उन्होंने 'अजमेर हिस्टॉरिकल एंड डिस्क्रिप्टिव किताब के तर्कों का भी हवाला दिया गया है। इसमें अजमेर दरगाह के नीचे हिंदू मंदिर का जिक्र किया गया है। इसको लेकर 27 नवंबर को कोर्ट ने याचिका मंजूर कर दी। इधर, सिविल जज मनमोहन चंदेल ने अजमेर दरगाह समिति, अल्पसंख्यक मंत्रालय और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को नोटिस जारी कर 20 दिसंबर तक जवाब मांगा है।
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मंजूरी
दरगाह को लेकर विष्णु गुप्ता के यह तर्क सुर्खियों में
विष्णु गुप्ता की ओर से कोर्ट में पेश याचिका में उन्होंने 168 पेज की 'अजमेर: हिस्टॉरिकल एंड डिस्क्रिप्टिव किताब के पेज नं. 93, 94, 96 और 97 का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि जब मैंने हरबिलास शारदा की किताब को पढ़ा, तो उसमें साफ-साफ लिखा था कि यहां पहले ब्राह्मण दंपती रहते थे। यह दंपती सुबह चंदन से महादेव का तिलक करते थे और जलाभिषेक करते थे।
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० 1. याचिका में पहला तर्क है कि दरगाह में मौजूद बुलंद दरवाजा की बनावट हिंदू मंदिर के दरवाजों की तरह है, इनकी नक्काशी को देखकर यही अंदाजा लगाया जा सकता है, कि दरगाह से पहले यहां हिंदू मंदिर रहा होगा।
• 2. दरगाह के ऊपरी हिस्से को देखे, तो वहां हिंदू मंदिरों के अवशेष जैसी चीजें दिखती हैं। इनके गुंबदों को देखकर आसानी से समझा जा सकता है कि किसी हिंदू मंदिर को तोड़कर यहां दरगाह का निर्माण करवाया गया।
3. विष्णु गुप्ता का तीसरा तर्क, देश में जहां भी शिव मंदिर हैं, वहां पानी और झरने जरूर होते हैं, ऐसा ही अजमेर दरगाह में भी है।
मस्जिदों और दरगाहों को लेकर इतनी नफरत क्यों? औवेसी
अजमेर दरगाह केस मामले पर सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि दरगाह पिछले 800 सालों से यहीं है। नेहरू से लेकर सभी प्रधानमंत्री दरगाह पर चादर भेजते रहे हैं, लेकिन बीजेपी-आरएसएस ने मस्जिदों और दरगाहों को लेकर इतनी नफरत क्यों फैलाई है? उन्होंने कहा कि पीएग गोदी भी वहां चादर भेजते हैं, फिर निचली अदालतें प्लेरा ऑफ वर्शिप एक्ट पर सुनवाई क्यों नहीं कर रही हैं? इस तरह कानून का शासन और लोकतंत्र कहां जाएगा? यह देश के हित में नहीं है। पीएम मोदी और आरएसएस का शासन देश में कानून के शासन को कमजोर कर रहा है। यह सब बीजेपी-आरएसएस के निर्देश पर किया जा रहा है।
मंजूरी
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विष्णु गुप्ता की ओर से कोर्ट में पेश याचिका में उन्होंने 168 पेज की 'अजमेर: हिस्टॉरिकल एंड डिस्क्रिप्टिव किताब के पेज नं. 93, 94, 96 और 97 का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि जब मैंने हरबिलास शारदा की किताब को पढ़ा, तो उसमें साफ-साफ लिखा था कि यहां पहले ब्राह्मण दंपती रहते थे। यह दंपती सुबह चंदन से महादेव का तिलक करते थे और जलाभिषेक करते थे।
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० 1. याचिका में पहला तर्क है कि दरगाह में मौजूद बुलंद दरवाजा की बनावट हिंदू मंदिर के दरवाजों की तरह है, इनकी नक्काशी को देखकर यही अंदाजा लगाया जा सकता है, कि दरगाह से पहले यहां हिंदू मंदिर रहा होगा।
• 2. दरगाह के ऊपरी हिस्से को देखे, तो वहां हिंदू मंदिरों के अवशेष जैसी चीजें दिखती हैं। इनके गुंबदों को देखकर आसानी से समझा जा सकता है कि किसी हिंदू मंदिर को तोड़कर यहां दरगाह का निर्माण करवाया गया।
3. विष्णु गुप्ता का तीसरा तर्क, देश में जहां भी शिव मंदिर हैं, वहां पानी और झरने जरूर होते हैं, ऐसा ही अजमेर दरगाह में भी है।
मस्जिदों और दरगाहों को लेकर इतनी नफरत क्यों? औवेसी
अजमेर दरगाह केस मामले पर सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि दरगाह पिछले 800 सालों से यहीं है। नेहरू से लेकर सभी प्रधानमंत्री दरगाह पर चादर भेजते रहे हैं, लेकिन बीजेपी-आरएसएस ने मस्जिदों और दरगाहों को लेकर इतनी नफरत क्यों फैलाई है? उन्होंने कहा कि पीएग गोदी भी वहां चादर भेजते हैं, फिर निचली अदालतें प्लेरा ऑफ वर्शिप एक्ट पर सुनवाई क्यों नहीं कर रही हैं? इस तरह कानून का शासन और लोकतंत्र कहां जाएगा? यह देश के हित में नहीं है। पीएम मोदी और आरएसएस का शासन देश में कानून के शासन को कमजोर कर रहा है। यह सब बीजेपी-आरएसएस के निर्देश पर किया जा रहा है।
अजमेर दरगाह के सर्वे से जुड़े मामले पर पूर्व नौकरशाहों ने पीएम मोदी को लिखी चिट्ठी : यहां क्लिक करके पढ़े