हंबनटोटा बंदरगाह पर भारत से श्रीलंका ने किया बड़ा वादा, कैसे चीन की बढ़ गई टेंशन

हंबनटोटा बंदरगाह पर भारत से श्रीलंका ने किया बड़ा वादा, कैसे चीन की बढ़ गई टेंशन

संक्षिप्त विवरण:
श्रीलंका ने भारत को आश्वासन दिया है कि वह अपनी ज़मीन का किसी भी प्रकार से ऐसा इस्तेमाल नहीं होने देगा जिससे भारत की सुरक्षा को खतरा हो। खासतौर पर हंबनटोटा बंदरगाह को लेकर यह आश्वासन दिया गया है, जहां चीन का प्रभाव बढ़ता दिख रहा था।

मुख्य बिंदु:

1. भारत की चिंता: भारत को यह चिंता थी कि चीन हंबनटोटा बंदरगाह का इस्तेमाल भारत के खिलाफ कर सकता है।


2. श्रीलंका का वादा: श्रीलंका के राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके ने कहा कि उनकी ज़मीन को किसी भी प्रकार की गतिविधि के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाएगा जो भारत की सुरक्षा के लिए हानिकारक हो।


3. चीन की टेंशन: इस बयान से चीन की बढ़ती गतिविधियों और निवेश पर असर पड़ सकता है क्योंकि हंबनटोटा बंदरगाह चीन के लिए सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है।



पृष्ठभूमि:
हंबनटोटा बंदरगाह चीन के ऋण के कारण श्रीलंका द्वारा 99 वर्षों की लीज़ पर चीन को सौंपा गया था। इससे चीन का प्रभाव क्षेत्र बढ़ने लगा, जिसे भारत अपनी सुरक्षा के लिए एक खतरे के रूप में देखता है।

श्रीलंका और भारत के बीच हंबनटोटा बंदरगाह को लेकर हालिया बयान बेहद अहम है। इसका पूरा संदर्भ समझना ज़रूरी है:

1. हंबनटोटा बंदरगाह क्या है?

हंबनटोटा बंदरगाह श्रीलंका के दक्षिणी तट पर स्थित है। श्रीलंका ने इस बंदरगाह का निर्माण चीन से भारी कर्ज़ लेकर किया था। जब श्रीलंका कर्ज़ चुकाने में असफल रहा, तो यह बंदरगाह 99 साल की लीज़ पर चीन को सौंप दिया गया।

2. भारत की चिंता क्यों?

चीन के इस बंदरगाह पर अधिकार से भारत को यह डर है कि चीन इसे सैन्य गतिविधियों के लिए इस्तेमाल कर सकता है।

हंबनटोटा की स्थिति रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह हिंद महासागर में समुद्री व्यापार के प्रमुख मार्ग पर स्थित है।


3. श्रीलंका का वादा

श्रीलंका के राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके ने हाल ही में भारत को आश्वासन दिया है:

श्रीलंका अपनी ज़मीन का इस्तेमाल किसी भी ऐसी गतिविधि के लिए नहीं होने देगा, जो भारत की सुरक्षा के लिए खतरा बने।

यह बयान चीन को संकेत देता है कि श्रीलंका अपनी संप्रभुता और संतुलन बनाए रखना चाहता है।


4. चीन की टेंशन क्यों बढ़ी?

चीन हंबनटोटा बंदरगाह को एक सामरिक निवेश के रूप में देखता है।

श्रीलंका द्वारा भारत को आश्वासन देने से चीन का प्रभाव कमज़ोर हो सकता है।

भारत और श्रीलंका के बीच बढ़ते सहयोग से चीन की ‘String of Pearls’ रणनीति (जिसमें चीन हिंद महासागर में बंदरगाह विकसित कर रहा है) को झटका लग सकता है।


निष्कर्ष

श्रीलंका का यह वादा भारत-श्रीलंका संबंधों में विश्वास को मज़बूत करता है और चीन के बढ़ते दबदबे को संतुलित करने की कोशिश का हिस्सा है। इससे भारत को रणनीतिक राहत मिली है, जबकि चीन के लिए यह एक कूटनीतिक झटका है।

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